जिनकी है जेबें खाली,उनकी क्या होली क्या दिवाली
एक तो है ये महंगाई,उसके ऊपर पानी की आफत आई !
जिनकी जल से मिलती है सबको मुक्ति,
उसी गंगा के किनारे बसे लोगों की यह युक्ति !
मार्च के महीने से ही है बुरा हाल,
आगे के चार महीने में होगा सब बेहाल !
नालों के आगे लगी लम्बी कतार,
रोटी और चावल तो किसी प्रकार खरीद लेंगे
पर क्या होली में सब मांस-मछली खा पाएंगे ?
पिने वाले तो अपनी जुगार बैठा ही लेंगे
पर क्या ऐसी होली हम मानना चाहेंगे ?
क्यों न हम ऐसा करें अबकी होली ही न मनाएं ,
करें विनती प्रभु से की जापानियों को उनके बिचारें मिल जाये
जिस विपदा में वह आज है, वो तो विकसित देशों का राज है !
हम विज्ञानं को कहतें हैं वरदान ,वही ले रहा है निर्दोषों की जान!
हमने जिसे आत्मरक्षा के लिए बनवाएं .वही हम पैर इतने जुल्म धायें !
लेकिन एक बात तोह है साफ़ जीतनी भी देशें हैं शक्तिशाली
चाहे रूस,भारत,हो या अमेरिका ,नहीं है कोई खतरों से खाली !
हमें जैसा लगा हमने है लिख डाली .......... बुरा न मनो होली है .............
आलेख़-ओली गुहा
aouliguha@gmail .com
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