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Saturday, October 31, 2009

सूचना का अधिकार अधिनियम का इतिहास

मैग्‍सैसे अवार्ड विजेता श्रीमती अरूणा रॉय के नेतृत्व में व मजदूर किसान शक्ति संगठन के बैनर तले सूचना का अधिकार के लिए वर्ष
1992 में राजस्‍थान से आंदोलन शुरू हुआ था। इसी क्रम में अप्रेल 1996 में सूचना के अधिकार की मांग को लेकर चालीस दिन का  धरना दिया गया। राजस्‍थान सरकार पर दबाब बढ़ने पर तत्‍कालीन मुख्‍य मंत्री अशोक गहलोत ने वर्ष 2000 में राज्‍य स्‍तर पर सूचना 
का अधिकार कानून अस्तित्‍व में लाया। इसके बाद देखते ही देखते नौ राज्‍यों दिल्‍ली, महाराष्‍ट्र, तमिलनाडु, राजस्‍थान, कर्नाटक, जम्‍मू-
कश्‍मीर, असम, गोवा व मध्‍यप्रदेश में सूचना का अधिकार कानून लागू हो गया। कॉमन मिनियम प्रोग्राम में सूचना के अधिकार

अधिनियम को लोकसभा में पारित करने का संकल्‍प लिया गया था तथा नेशनल एडवायजरी कॉन्सिल के सतत् प्रयास से यह कानून 
देश में लागू हो गया है।
वर्ष 2002 में केन्‍द्र की राजग सरकार ने सूचना की स्‍वतंत्रता विधेयक पारित कराया, लेकिन वह राजपत्र में प्रकाशित नहीं होने से कानून 
का रूप नहीं ले सका। इस विधेयक में सिर्फ सूचना लेने की स्‍वतंत्रता दी, सूचना देना या नहीं देना अधिकारी की मर्जी पर छोड दिया।
वर्ष 2004 में प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह के नेतृत्‍व वाली केन्‍द्र की संप्रग सरकार ने राष्‍ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन किया, जिसने 
अगस्‍त 2004 में केन्‍द्र सरकार को सूचना का स्‍वतंत्रता अधिनियम में संशोधन सुझाए और उसी वर्ष यह विधेयक संसद में पेश हो गया। 
11 मई 2005 को विधेयक को लोकसभा ने और 12 मई 2005 को राज्‍यसभा ने मंजूरी दे दी। 15 जून 2005 को इस पर राष्‍ट्रपति की 
सहमति मिलते ही सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 पूरे देश में प्रभावशील हो गया। उक्‍त अधिनियम की धारा 4 की उपधारा (1) 
एवं धारा 12, 13, 15, 16, 24, 27, 28 की उपधाराएं (1) एवं (2) तत्‍काल प्रभाव में आ गई और शेष प्रावधान अधिनियम बनने की 
तिथि से 120 वें दिन अर्थात् 12 अक्‍टूबर 2005 से लागू किया गया। प्रत्‍येक राज्‍य में आयोग का गठन करने का प्रावधान रखा गया।
       
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