वैदिक मंत्रों के धुन से सारा मनिहारी भक्तिमय माहौल में डूब गया है !प्रत्येक वर्ष के भांति इस वर्ष भी पवन गंगा के तट पर सार्वजनिक यज्ञ समिति मनिहारी द्वारा माघ पूर्णिमा से चारदिवसीय शिवशक्ति महायज्ञ का शुभारम्भ हो चूका है!
यज्ञ-स्थल में स्थापित मुख्य प्रतिमा |
धार्मिक मान्यता है की माघ पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, जिस कारण से हजारों हजारों के संख्या में कटिहार, अररिया,किशनगंज,पूर्णिया , फारविसगंज, कोशी के कई क्षेत्रों के अलावे पडोसी देश नेपाल एवं भूटान के सीमावर्ती क्षेत्र से भी कई श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं !
यह एतेहासिक मेला १८८१ ईस० से चलता आ रहा है, जो पूर्व में भव्य चैतवारनी मेले के नाम से प्रसिद्ध था ! धीरे-धीरे आधुनिकता के कारण इसकी पहचान धूमिल होती गयी ,परन्तु कुछ लोगों के प्रयाश से इसे माघ मेला के नाम से एक नयी पहचान मिली ! कहा जाता है की कभी इसी चैतवारनी मेले में अशोक कुमार द्वारा अभिनीत फिल्म "वन्दिनी" की कुछ अंश फिल्माई गयी थी !
वर्त्तमान में मेले को यथा-संभव सजावट के साथ वही पुरानी छटा और संस्कृति देने की भरपूर कोशिश की गयी है ! यज्ञ मंडप को मनमोहक फूलों से सजाया गया है ! मेला समिति द्वरा साफ-सफाई के साथ-साथ आगंतुकों की सुरक्षा की भी पूरी व्यवस्था की गयी है !स्थानीय प्रशासन की भी भागीदारी संतोषजनक देखी गयी !प्राथमिक स्वस्थ्य केंद्र की ओर से शिविर एवं अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी एवं मनिहारी थाना अध्यक्ष भी दल-बल के साथ मेले की निगरानी में व्यस्त हैं !मेले के अध्यक्ष श्री सहदेव यादव ,उपाध्यक्ष प्रमोद झा ,पंकज यादव ,दुष्यंत चौधरी(कोसाध्यक्ष) ,आलोक यादव ,अनुज पासवान ,जयप्रकाश मंडल (मेला प्रभारी ),काजल मित्रा ,पुरसोत्तम ,अनूप चौधरी,सौरव सिंह,शिसुदिप,सुमन झा,छोटू झा आदि लोंगों की जीतनी प्रशंसा की जाय उतनी कम है ! निगरानी समिति में प्राचार्य सुशील यादव ,प्रदुमन ओझा ,डॉ भोला प्रसाद गुप्ता ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया है ! स्थानीय मिडिया कर्मी में प्रीतम ओझा(दैनिक जागरण),मुकेश यादव(नयी बात),राजेश सिंह(प्रभात खबर),रंजीत गुप्ता(के०बी०सी०),मृगेंद्र कुमार(संपादक कटिहार लाइव) ,केसर रजा(आज), भी लगातार विधि-व्यवस्था का जायजा ले रहें हैं !
मेले की झलकियाँ कटिहार लाइव की नजर में मनिहारी गंगा तट पर भीड़ का नजारा |
आदिवासियों द्वारा विशेष पूजन- अपनी भारतीय सभ्यता-संस्कृति के पुरातन अनुष्ठानों को संजोये हुए आदिवाशियों द्वारा पारंपरिक रात्रिकालीन पूजा देखने योग्य है ! हर वर्ष माघ पूर्णिमा के दिन आदिवासी समुदाय के लोग सामूहिक रूप से मेले में आकर विशेष पूजा करतें हैं ! पुरे रात भर की इस पूजन में आदिवासी समुदाय के लोग अपने मौलिक वेश-भूषा अपनाकर विशेष रूप से तैयार पूजा स्थल में अपने पारंपरिक ढोल-नगारों-मृदंगों एवं तीर-कमानों के साथ घूम-घूम कर अपनी ही भाषा में मंत्रोचारण कर पूजा करतें हैं ! महिलाये रंग-विरंगे पोशाक पहनती है और पुरुष भी अपने पारंपरिक पोशाक में मौजूद होतें है ! नव-युवतियों का इस पूजन में आना वर्जित होता है ! गंगापूजन से शुरू होती इस धार्मिक अनुष्ठान में रात-भर विधि-विधान से पूजा कर अपने देवता से मन्नतें मांगी जाती है और पुरी होने पर कबूतर की बलि चढ़ाई जाती है ! पूजे में
आदिवासियों के धर्म गुरु |
आदिवासियों का पूजा स्थल |
क्रमश: ........
0 comments:
Post a Comment
अपनी बहुमूल्य राय दें